कहने को तो दुनिया
बदल रही हैं
हर पल हर वक्त
पर अपनों को ही अपनों से
दूर कर रही है|
पहले का दौर भी
क्या हसीन हुआ करता था
सब एक साथ
हँसते- गूनगुनाते, खाते-पीते थे
साथ बात–चीत करके दुःख-सुख बाँटते थे|
पर आज के
बदलते दौर ने
यह सब खुशियाँ छीन ली है
अब लोग एक साथ रह कर
भी एक साथ नहीं होते|
इस बदलाव का कारण कुछ और नहीं
बल्कि प्रोधोगिकी है
जहाँ इसने जीवन जीने का
ज़रिया आसन बनाया है
वहीं अपनो को अपनो से अलग कर दिखाया है|
आज कल परिवार के साथ कम
और गैजेट के साथ ज़्यादा
समय व्यतीत करते है
ये इन्सान की मुर्खता ही तो है
जो इसे जीवन जीने का ज़रिया बनाता जा रहा है|
वह दिन दूर नही
जब परिवार और रिश्ते- नातो
का कोइ मोल न रह जायेग
और सब बस प्रोधोगिकरण
के गुलाम बनकर रह जाएगे|
अब भी वक्त है
रोक लो अपने आप को
नही तो तरसते रह जाओगे
परिवार और प्यार की खातिर
वक्त जो बीत जायेग वह फिर कभी लौट के न आएगा|
ऋषिका सृजन
–XxXxX–
©All Rights Reserved
© Rishika Ghai
image courtesy google
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Bahut khoob likha hai. Yahi to hai aaj Ki sachchai
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Maine Apni aakho se dekha hai tabhi to likha hai
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आपकी कविता प्यारी है,वास्तविकता को बताती है ।
मैने इसे पढ़कर कुछ लिखा है…..
इस प्रौद्योगिकी ने कर रखा है
बुरी तरह से दुखी
करती है ये किसी को हैरान
किसी को परेशान
तो किसी के लिए है ये खेल
खेलने का सामान
कोई इसके अति उपयोग से होता है
परेशान
तो कोई इसे समझता है आगे बढ़ने
के लिए उपयोगी सामान
जीवन मे इसकी उपयोगिता इतनी कैसे बढ़ गयी
कि घर के प्यार और मोह की सत्ता हिल गयी
अभी भी समय है नासूर बनने से पहले इसके चंगुल
से निकलना होगा
समय रहते हुए ही सभी को सँभलना होगा😊
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Shukriya ki aapko meri Kavita pasand aaye. Aur mujhe khushi huye ki aapko meri Kavita se likhne ka idea Mila. Aapki Kavita bhi bahut bahut achi hai. Shukriya Kavita ke javab Kavita likhne ke liye
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एकदम सत्य वचन ।बहुत खूब मनी पर एकदम फिट बैठता हैं
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वह दिन दूर नही
जब परिवार और रिश्ते- नातो
का कोइ मोल न रह जायेग
और सब बस प्रोधोगिकरण
के गुलाम बनकर रह जाएगे|… बहुत सही लिखा है।
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Shukriya ki aapko meri Kavita pasand aaye
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